गठबंधन नहीं 'महागठबंधन' की तैयारी में सपा-बसपा, छोटे दल आएंगे साथ, एक सी...
आम चुनाव 2019 में भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के प्रस्तावित गठबंधन में छोटे दलों को भी दो-तीन सीट दी जा सकती है। कोशिश गठबंधन को महागठबंधन का रूप देने की है। एनसीआर की गाजियाबाद या नोएडा सीट आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ी जा सकती है। अपना दल (कृष्णा गुट) व वामपंथी दलों को एकाध सीट मिल सकती है। यह भी संभव है कि छोटे दलों के एक-दो नेता बड़ी पार्टियों के सिंबल पर चुनाव लड़ें।
गोरखपुर, फूलपुर व कैराना लोकसभा सीट तथा नूरपुर विधानसभा सीट पर विपक्षी दल महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़े थे। गोरखपुर व फूलपुर में कांग्रेस इस गठबंधन में नहीं थी लेकिन तमाम छोटे दलों ने सपा उम्मीदवार का समर्थन किया था।
कैराना व नूरपुर में कांग्रेस ने क्रमश: रालोद व सपा प्रत्याशी का समर्थन किया था। कमोबेश इसी तरह के गठबंधन का स्वरूप लोकसभा चुनाव में बनाने की योजना है। इसके सबसे बड़े घटक सपा-बसपा ही रहेंगे।
रालोद के लिए जो सीट छोड़ी जाएगी वह पश्चिमी यूपी के जाट बहुल इलाकों की होगी। इनमें बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना व मथुरा जैसी सीट शामिल है। एनसीआर में आप को एक सीट देने पर विचार हो सकता है।
गोरखपुर में जिस तरह निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को सपा ने प्रत्याशी बनाया, वैसा ही प्रयोग कुछ और सीटों पर हो सकता है। पीस पार्टी, अपना दल, वामपंथी समेत अन्य छोटे दलों के नेताओं को लोकसभा में पहुंचाने के लिए उन्हें दूसरे दलों के सिंबल पर चुनाव लड़ाया जा सकता है।
सपा सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस को भी गठबंधन में रखने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस का बसपा व सपा के प्रति क्या रुख रहता है?
सपा सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस को भी गठबंधन में रखने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन यह इस पर निर्भर करेगा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस का बसपा व सपा के प्रति क्या रुख रहता है?
सूत्रों के मुताबिक, गठबंधन के घटक दलों के बीच जल्द ही सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत होगी। हो सकता है, बसपा सर्वाधिक सीटों पर चुनाव लड़े। बसपा मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करेगी और दूसरे दल भी संभवत: बसपा सुप्रीमो को 2019 में गठबंधन के पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश करेंगे।
माना जा रहा है कि इससे दलित वोटों की एकजुटता बढ़ेगी। वैसे सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला 2014 के लोकसभा चुनाव में परफॉरमेंस रहेगा लेकिन इसे लचीलेपन के साथ लागू किया जाएगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें